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ये सलीम सैफी भी नटखट है-इस बर्थ डे पर भी उम्र नहीं शो कर रहा.!

HAPPY B’DAY NOUGHTY

कुछ लोग हालात प्रूफ होतें हैं…हमेशा ख़ुश रहना उनकी आदत होती है….ऐसे ही एक शख़्स की बर्थ डे पर उसके बारे मेे उसी के एक दोस्त के विचार पेश हैं….!
1 real story of 2 journalist.
Written By
Jitarth Jai Bhardwaj,No.1 Indian Journalist in Australia on FB.

शुक्रिया, सलीम सैफी होने के लिए….
आज से करीब १८ साल पहले मैं दिल्ली से “आँखों देखी”( दूरदर्शन पर न्यूज़ कैप्सूल हुआ करता था) के लिए मेरठ एक स्टोरी करने गया, खबर आज भी याद है….इललीगल सिलिंडर के बारे में, मेरठ मेरा अपना शहर है सोचा आसानी से स्टोरी कर लूंगा मगर ३ घंटे भटकने के बाद भी ढंग के विसुअल नहीं मिले….लगा नलिनी सिंह (मेरी बॉस) नाराज़ होगी…अपने लोकल कांटेक्ट के साथ कुछ खाने लगा तो वहां एक स्थानीय पत्रकार सलीम सैफी से मुलाकात हुई…
उस १० मिनट की बातचीत के बाद सलीम ने न केवल रात 8 बजे तक मेरी मदद बल्कि आस पास की ४ और स्टोरी बता दी जिन्हें किया जा सकता था ….मैं खुश था काम हो गया, स्टोरी ब्रॉडकास्ट होने के बाद यूपी सरकार हरकत में आयी तो बॉस भी खुश हुई…..
लेकिन एक नाम कहीं बीच मे था, सलीम सैफी…स्टोरी भले ही मैंने की थी मगर उसके हर एलिमेंट को सलीम ने ही संभव बनाया था….
बस उस दिन से लेकर आज तक सलीम सैफी मेरा भाई -दोस्त दोनों हो गया…एक ऐसा दोस्त जिसने मुझसे आजतक कुछ नहीं माँगा सिवाए दोस्ती के…..जबतक मैं भारत (दिल्ली) में था तब तक शायद कोई दिवाली हो जब सलीम मिठाई लेकर ना आया हो, घर पर मैं हूँ या माँ-पिताजी या शादी के बाद पत्नी सब से सलीम सैफी गपे लड़ा लेता है….
खैर, पहली मुलाकात के बाद बात-बात सलीम को कहा क्यों ना तुम भी दिल्ली आजाओ और टीवी रिपोर्टिंग करो….बस एक दिन सलीम आँखों देखी के दफ्तर के बाहर खड़े थे…..सलीम की बातचीत का जादू या किसी भी तरह संपर्क बना कर पहुचने की कला, सोहिब इल्यासी के शो में काम मिल्या गया….. बदकिस्मती से सोहेब के जेल जाने की वजह से शो शायद बांड होगया….
सलीम ने काम जारी रखा और बेहतर होने की कोशिशें भी…..
सलीम से लंबी बाते होती रही, में दिल्ली की मीडिया के जंगल में सर्वाइवल के दौरान लगने वाली खरोचों और घाव पर कभी मरहम लगता कभी नाराज़ भी होजाता मगर सलीम सैफी हमेशा ख़ामोशी से सुनता और अमल भी करता….शायद यही खूबी सलीम को अनोखा बनाती है…..
इसबीच मैं जापान चला गया, जब लौटा तो सलीम सैफी “आजतक” में काम करते हुए वेस्टर्न यूपी मे बड़ा नाम बन गया था …..
अरे हाँ अगर आप लोगो को पता नहीं तो बता दूँ की सलीम को आजतक मैं नौकरी कैसे मिली थी…दरअसल, आजतक में एंट्री की हर कोशिश नाकाम होने के बाद (क्यों की उस वख्त वहां सिर्फ एक राज्य के और विशेष जाति के लोगो को काम मिलता था) वीडियोकॉन टावर में पार्किंग में सलीम ने अरुण पुर्री को कार निकालते हुई घेर लिया…….सीधे कहा मुझे नौकरी क्यों नहीं मिलती, केवल इसलिए की मैं राज्य विशेष का नहीं हूँ, आप मुझसे स्टोरी करवा ले अगर किसी से भी २५ ना करूँ तो आप काम मत देना….शायद अरुण पुर्री को सलीम की हिम्मत या शायद साफगोई पसंद आगयी….फिर क्या सलीम को अपना बड़ा ब्रेक आजतक में मिल गया ….
मैं जापान से लौटा तो कुछ समय काम नहीं था…..बहुत से दोस्तों ने बहुत मदद की मगर बात सलीम की करूँ तो वो दूसरे ही अवतार में था, अब वो मुझे समझा रहा था भाई परेशां मत हो….अपने हर जानने वाले को मेरी नौकरी के लिए कहा, यहाँ तक की आजतक के रीजनल ब्यूरो में आने को भी मुझे राज़ी करने की कोशिश की….एक दिन घर आकर बोला मेरठ में ब्यूरो है मैं बात करलूंगा आप इससे संभालो मैं आपके अंडर में काम करने में खुश हूँ…..मुझे दूसरी जगह नौकरी मिलगई मगर ….
वो दिन मैं कभी नहीं भूल सकता, उस दिन सलीम सैफी मेरे लिए बड़ा बहुत बड़ा इंसान होगया…
सलीम की लायी नानखटाई का स्वाद आज भी दिल में बसा है…
सलीम की शादी हुई, फिर बेटा मैं कभी फंक्शन में शामिल नहीं होपाया, हमेशा बहाना एक ही रहता था, नई मंजिलो और ऊचाइयों की तलाश में बिजी हूँ…… आज लगता है क्या क्या मिस किया….
लेकिन सलीम ने कभी बुरा नहीं माना और अगर माना भी तो मुझे कभी पता नहीं चलने दिया….
ऐसा ही है सलीम……
दिल्ली में काम करते हुए मैंने अच्छे, बुरे, ठीक, बहुत अच्छे हर तरह के दिन देखे लेकिन सलीम से सम्बन्ध कभी कुर्सी से जुड़ें नहीं थे ना आज है….
जब मै ऑस्ट्रेलिया माइग्रेट कर रहा था उस वख्त सलीम कुछ गिने लोगो में था जो हर कदम पर साथ थे, मेरा ड्राइविंग लाइसेंस खो गया तो एक दिन बनवा कर लाने और मेरे पीछे माँ पिताजी का ख्याल रखने का भरोसा भी सलीम ने दिलाया ….
पिछले आठ साल मे दिवाली, होली और मेरे जन्मदिन की बधाई देने वालो मे सलीम सैफी सबसे पहले होता है…मैं आज भी ईद पर सलीम को मुबारक कहना भूल जाता हूँ….और दो दिन बाद फोन करने पर सलीम कहता है कोई नहीं आप बिजी रहते हो….वो कभी मेरे लिए बिज़ी नहीं होता २ बेल मे फोन उठता है और कभी किसी काम को मना नहीं करता.. सलीम के पास हर काम को पूरी शिदत से करने की ताकत और समझ है…
काश मैं सलीम हो पता…….
लेकिन तब मेरे पास मेरे जैसे दोस्त होते सलीम जैसे नहीं…..
पिछले ६ दिन से ये लिखने की कोशिश कर रहा था लेकिन फिर वही बहाना बिजी था,क्या करूँ आदत से मजबूर हूँ ….
सलीम सैफी,
आज मैं दिल की गहराइयों से कहता हूँ…
शुक्रिया, मेरा दोस्त होने के लिए…
शुक्रिया, मुझे अपना दोस्त होने देने के लिए..
शुक्रिया, अंजानो की भीड़ मे अपना होने के लिए..
शुक्रिया, इंसान होने के लिए….
शुक्रिया, सलीम सैफी होने के लिए.


(सलीम सैफी जी की फेसबुक वॉल से बिना पूछे, बिना साभार..)

About The Author

आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

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