नई दिल्ली। (17 सितंबर 2015) गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिश्वत की रकम मिलने के आधार पर रिश्वत लेने का आरोप नहीं लगाया जा सकता यह साबित करना होगा कि आरोपी ने रिश्वत मांगी थी। चीफ जस्टिस एचएल दत्तू, जस्टिस वी गोपाल गौड़ा और जस्टिस अमिताव रॉय की बैंच ने यह टिप्पणी करते हुए आंध्र प्रदेश के तकनीकी शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक को 19 साल पुराने मामले में बरी कर दिया। उन्हें कथित तौर पर 500 रूपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया था।
बैंच ने अपने फैसले में कहा कि रिश्वत लेने का आरोप सिद्ध करने के लिए रिश्वत मांगे जाने का सबूत अनिवार्य है। सेक्शन 7 और 13(1)(डी)(1) व (2) के तहत अपराध की शिकायत में अवैध फायदा लेने की मांग सबूत है और इसके अभाव में आरोप खारिज हो जाएंगे। केवल अवैध रकम या फायदा मिलने की कथित स्वीकार्यता से इन धाराओं के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है। केवल रकम मिलने से आरोप सिद्ध नहीं होगा और यह साबित करना पड़ेगा कि आरोपी ने घूस मांगी थी और पैसे ले भी लिए थे।