दिल्ली(23जुलाई2015)- आज सुबह ही उर्दू के एक संघी अख़बार में ख़बर देखी कि मौलाना अरशद मदनी और मौलाना महमूद मदनी आठ साल बाद ईद के मौक़े पर एक दूसरे से मिले..!! बेहद पसोपेश में हूं…! कि इस ख़बर पर ख़ुशियां मनाऊं या शर्मिदगी का इज़हार करूं ? दोनों ही बड़े पहुंचे हुए मज़हबी घराने के फरज़ंद हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि बड़े आलिम भी हैं, और दोनों भाई भी हैं! अगर वाक़ई ये दोनों इस्लाम के आलिम हैं, और इस्लाम को जानने का दावा करते हैं, तो फिर शायद जो मैनें सुना है, वो इन्होने भी सुना होगा..? कि किसी भी मोमिन से तीन से ज्यादा नाराज़गी या बोलचाल का बंद रखना किसी हद तक नापंसदीदगी के दायरे में आता है! अगर मेरी जानकारी गलत है तो मैं अपनी बात यहीं ख़त्म करता हूं और अपने पाठकों और दोनों भाइयों से माफी मांगता हूं!
लेकिन अगर दो मोमिनों के बीच नाराज़गी को लेकर किसी भी हद कर मुमानिअत यानि उसको न करने की बात इस्लामिक नुक़ता ए नज़र से ज़ाहिर होती है। तो फिर ये दोनों भाई पिछले आठ साल से किस बात पर एक दूसरे से नाराज़ थे? इनके बीच किस चीज़ का बंटवारा था? जहां तक मैनें इनके बारे मे सुना है, एक तो इनका बड़ा काम मदरसे का है दूसरा जमीअत का! तो शायद या तो मदरसे की आमदनी या इसके संचालन का झगड़ा होगा? या फिर मुसलमानों की कथिततौर पर रहनुमाई करने वाली जमीतुलउलेमाए हिंद का संचालन! या फिर इसके अलावा भी कोई वजह है तो फिर वो अवाम के, ख़ासतौस से मुसलमानों के सामने आनी चाहिए? पिछले लगभग आठ साल से दोनों की नाराज़गी से इतना तो तय हो ही गया है कि इनमें से कोई एक तो गलत है! कौन…? और कितना…? ये भी उस क़ौम के सामने आना चाहिए जो इनको बेहद एहतराम की नज़र से देखती और जानती है! दरअसल इनके एक बुज़ुर्ग की बुज़ुर्गी की वजह से ही मुस्लिम समाज का एक तबक़ा आजतक इस पूरे घराने को बेहद एहतराम की नज़र से देखता आया है! इतना ही नहीं इनके परिवार या जमीयत की एक आवाज़ पर आज भी लाखों मुसलमान कहीं भी जमा हो जाते हैं। भले ही इनको आजतक ये पता न हो कि पिछली बार या हमेशा किस बात के लिए उनको इकठ्ठा किया गया था! हालांकि कई बार राजनीति में हाथ आज़मा चुके ये लोग भले ही राज्यसभा में सीधे पहुंचाए जाते रहे हों..! लेकिन वोट के दम पर संसद या किसी भी हाउस में इनको जाना नसीब नहीं हुआ है! ख़ैर बात कर चल रही थी आठ साल पुरानी नाराज़गी के बाद बंद मेल मुलाक़ात के दोबारा बहाल होने की उम्मीदों की! क्योंकि इस ईद पर दोनों ने गले मिलकर ये इशारा दिया है कि बातचीत के बाद आपसी मतभेद दूर कर लिये जाएंगे ! इस सब में इनके एक बहनोई की नेकी और उनका रोल बेहद अहम बताया जा रहा है। दोनों भाइयों को नज़दीक लाने की कोशिशों में आज का ये बयान… कि बातचीत के ज़रिए मतभेद दूर कर लिये जाएगें और मिलकर काम किया जाएगा! बेहद ख़ास बात है…कि आख़िर ऐसे कौन से मतभेद थे..? जिनकी वजह से इस्लाम के न सिर्फ मानने वाले…! बल्कि जानने का दावा करने वाले दो भाई आठ साल आपस में मेलजोल नहीं रख पा रहे हैं!
बहरहाल छोटा मुंह और बड़ी बात के लिए बेहद माफी के साथ कहना चाहूंगा कि ये दोनों हस्तियां मेरे व मेरे परिवार के लिए भी बेहद मोहतरम हैं। लेकिन बहैसियत एक क़ौमी रहनुमा इनकी ज़िम्मेदारी है कि जनता के दिलों में उठने वाले वसवसों और सवालों को दूर करें। क्योंकि ख़लीफा हज़रत उमर (रज़ि) एक बार मिंबर पर तशरीफ फरमा थे, और उन्होने अवाम से ख़िताब करना शुरु किया, तो मजमे से किसी शख़्स ने कहा कि ऐ उमर हम तुम्हारी बात न सुनेंगे। इस बात पर अगर आज का कोई राजा होता, तो उस शख़्स को मिलने वाली सज़ा कुछ भी हो सकती थी। मगर हज़रत उमर ने सवाल किया..? क्यों? तो उन्होने कहा कि हमको मालूम है कि तुम्हारी लंबाई की वजह से सरकारी तौर पर तुमको मिलने वाले कपड़े में से तुम्हारा कुर्ता सिलना मुश्किल है। इसके बावजूद आपने नया कुर्ता कैसे बना लिया? तो हज़रत उमर ने अपने बेटे को बुलाया और उनसे कहा कि इस बात का जवाब आप ही दें। तो उनके बेटे ने कहा कि ये सही है कि मेरे वालिद की लंबाई और क़दो क़ामद ज्यादा होने की वजह से उनको मिलने वाले कपड़े से उनका कुर्ता नहीं सिया जा सकता। लेकिन जो कपड़ा मुझको मिला था मैनें अपने वालिद को यह कह कर दे दिया कि इसको मिलाकर आप भी नया कुर्ता बनवा लें। तब उस शख़्स ने कहा ठीक है कि अब हम आपकी बात सुनने और मानने को तैयार हैं। मैं कोई आलिम या कोई मज़हबी ज्ञाता नहीं हूं… इस वाक़ये में अगर कोई कोताही लगे तो इसको महज़ एक मिसाल के तौर पर ही देखें कि जिस मज़हब ने अपने ख़लीफा तक को अवाम की जवाबदही के लिए पांबद कर दिया हो। उसके मामूली कथित रहनुमा भला कैसे उन सवालों से मुंह छिपा सकते हैं जिनकी वजह से अवाम पसोपेश में पड़ जाए?
और हां एक बात और इन दोनों भाइयों के मानने और इनकी पैरवी करने वाले लाखों लोग इनका बेहद सम्मान करते हैं, और उसमें मेरा परिवार और मैं ख़ुद भी शामिल हूं। लेकिन आज की इस ख़बर को देखकर मुझे लगा कि जिनके पीछे हम आंख मूंदकर किसी भी तरफ दौड़ने को तैयार हैं.. भला वो ख़ुद किधर जा रहे हैं?
हमारी दुआ है कि इनके बीच जो भी मतभेद हैं वो दूर हों… जल्द ये दोनों एक हों और मिलकर क़ौम के ख़िदमत करें। इनको एक करने वालों की कोशिशें जल्द पूरी हों। और हां ये भी सच्चाई है कि अगर दोनों लोग एक हो जाते हैं इनके आपसी मतभेद दूर हो जाते हैं, तो यक़ीनन अवाम बेहद ख़ुश होगी क्योंकि आज के दौर में ये दोनों चेहरे मुस्लिम अवाम की उम्मीदों का मरकज़ हैं। अपने जज़्बात का इज़हार करते हुए किसी भी गुस्ताख़ी के लिए दोनों से बेहद अदब के साथ माफी..!
(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं, दूरदर्शन आंखों देखी, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ समेत कई दूसरे चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य चुके हैं और वर्तमान में http://www.oppositionnews.com में कार्यरत हैं।)