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नवीन भाई तुम झूठों के बीच फंसे एक सच्चे पत्रकार हो-दिल्ली पुलिस ने आपका नहीं देश का… पत्रकारिता का अपमान किया है!

AAJ TAK SENIOR JOURNALIST NAVIN KUMAR BEATEN BY DELHI POLICE DURING LOCK DOWN BRUTELY
NAVIN KUMAR JOURNALIST AAJ TAK

नई दिल्ली(31 मार्च 2020)- पूरे देश की तरह कई दिन से लॉकडॉउन में क़ैद हूं। बाहर की ख़बर इसलिए नहीं मिलती की घर में टीवी नहीं रखता। पत्रकार साथियों ने इसलिए नहीं बताया कि कई माह से विधिवत बेरोज़गार हूं। बहरहाल आज ही नवीन कुमार जी की एक बेहद शर्मसार करने वाली पोस्ट देखी। नवीन कुमार जिनको लोग चेहरे से कम आवाज़ से और टेवीविज़न में भी होते हुए क़लम से ज्यादा पहचानते हैं।
साल 2005 से इंडिया टीवी, एस-1 मे साथ काम किया है, इसलिए नज़दीकी से इस बंदे की क़लम को मैं भी किसी हद पहचानता हूं। ये वो शख़्स है जिसने अपने कार्यकाल में जिस भी सबजैक्ट को उठाया बड़े ही मन से उठाया।
लेकिन सच कहूं अगर आज मैं नवीन कुमार की पोस्ट न पढ़ता और कोई मुझे बता देता कि बेक़ाबू वर्दी ने उनके साथ सड़क पर मारपीट की है, तो शायद इतना दुख नहीं होता जितना नवीन कुमार की चिट्ठी पढ़ कर हुआ। लेकिन सच बताऊं नवीन कुमार की इज़्ज़त मेरे दिल में पहले से और बढ़ गई है। क्योंकि दूसरे के दर्द को बयां करने की कला जानने वाले इस क़लम के सिपाही ने जिस बेबाकी और मार्मिकता से अपना दर्द बयां किया इसको भारत के मीडिया के पाठ्यक्रम में जोड़ा जाए तो शायद आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा होगी।
आज मैं भी नवीन कुमार को लेकर अपने पत्रकार साथियों से कुछ संवाद करना चाहता हूं । लेकिन मेरा दिल है कि आप पहले नवीन कुमार की चिठ्ठी को पढ़ें। मैं ज्यूं के त्यू नवीन कुमार की चिठ्ठी को नीचे पेस्ट कर रहा हूं।
तो जनाब कोरोना वायरस की भयावहता पूरी दुनियां के सामने है। भारत के मुक़ाबले कई देशों में हालात और भी बदतर है। लेकिन शायद हमारी पुलिस स्वास्थ्य विभाग से भी मुस्तैदी से लाठी के दम पर अपने फर्ज़ को अंजाम दे रही है। सैंकड़ो वीडियो ऐसी देखने को मिल रही हैं जिनमें पुलिस शायद आदतन मुंह के बजाय लठ्ठ से ही बात करती दिख रही है। लेकिन हमारे मीडिया…जी हां वही मीडिया जिसका एक हिस्सा ख़ुद नवीम कुमार और मैं भी हैं।
नवीन कुमार के साथ जो हुआ वो तब हुआ जबकि उनको देश के, कथित सबसे तेज़ चैनल का आईकार्ड दिखाने का सौभाग्य प्राप्त था। लेकिन क्या उनके चैनल ने इस घटना को उतनी गंभीरता से लिया जितना …. …. के साछ होने पर लेता या नवीन भाई के मामले को भी उसी तरह व्यसायिक पैमाने से नापा जैसा कि दूसरे पत्रकारों को लेकर करता आया है, या फिर नवीन कुमार जैसो का भविष्य में अपमान आसानी से न हो सके, जैसा कोई ऐजेंडा शुरु कर दिया है। ऐजेंडा इसलिए कि इस चैनल का दूसरा नाम शायद ये भी होN सकता है।
देश के मीडिया जगत से आज एक बात कहनी है। नवीन कुमार भले ही फील्ड में न जाते हों, लेकिन उनके पास जो आईकार्ड था, वही अपने आप में हस्ताक्षर था। लेकिन ये वही हमारी पुलिस है, जिससे दिल्ली,यूपी या महाराष्ट्र के नाम पर कोई उम्मीद नहीं पाली जा सकती है। क्योंकि 1857 में भारतीय को आज़ादी का नाम लेने पर कुचलने के लिए 1861 में बने क़ानून के तहत आज भी संचालित होने वाली इस पुलिस का ये रौद्र रूप कोई नया नहीं है। इसका नाम लेकर संसद में उत्तर प्रदेश के मुखिया के घिग्घी और आंसू आ सकते हैं, इसका नाम लेकर करुणानिधि की आत्मा कांपती होगी, इसी पुलिस की लाठी का जलवा इन दिनों कोरोना को ख़त्म करने के लिए जमकर दिखाई दे रहा है।
दरअसल लगभग 20 साल क्राइम बीट देखकर ये लगा कि निचले सिपाही की समझ के ऊपर ठीकरा फोड़कर किसी को भी अपमानित करने का पुलिस के आला अफसरों को लाइसेंस प्राप्त है। क्योंकि बाद में सॉरी और पता नहीं जैसे शब्द वही अधिकारी बोलता है, जो उस वक्त सब कुछ जानता है।
दुर्भाग्य ये है कि देश के सबसे ज़रूरी और अनुशासित बल के कुछ लोग कभी कभी पूरे पुलिस बल पर सवाल करा देते हैं। साथ एक बड़ा कड़ुआ सच यह भी है कि हमारी पुलिस के कुछ लोग कभी कभी ब्योरोक्रेट्स या नेताओं का टूल बन पर अपनी ज़िम्मेदारी भूल जाते है।
और एक सच्चाई ये भी है कि सभी पत्रकार शायद तभी तक चुप हैं जब तक वो ख़ुद सड़क पर नहीं पिटते। मैंने अपने जीवन में अपने कई सीनियर्स को सरेआम पुलिस हाथों बदतमीज़ी से निजात दिलाई है। ख़ुद मेरे 2011 में खिलाफ कुछ ही मिनट में कई थानों में कई एफआईआर दर्ज कर दीं गईं थी। कई महीने तक मेरे घर की बिजली और पानी काट दिया गया। मेरे साथी तब शायद इसलिए ख़ामोश थे, कि ये सब उनके साथ नहीं मेरे साथ हो रहा था। लेकिन नवीन कुमार के साथ होने वाले अपमानजनक और बेहद अफसोसनाक हादसे को मैं निजी तौर पर अपने साथ अपने परिवार के साथ होने वाला हादसा मानते हुए देश से और सभी पत्रकारों से अपील करना चाहता हूं कि शीशे के केबिन और एसी न्यूज़ रूम और प्रेस क्लब के बाहर भी एक दुनियां है। आप उस दुनियां की अमानत हो, ये दुनियां आपसे बहुत उम्मीद करती है, प्लीज़ समझिये। इसके आगे लिखने की न तो मुझ में हिम्मत है न ही अपने सभी सम्मानियों को इससे अधिक कुछ कह सकता हूं।
कृपया नवीन कुमार की चिठ्ठी एक बार फिर देखें और सोंचे कि हम खड़े कहा हैं।
Navin Kumar : प्यारे साथियों, इस तरह से यह पत्र लिखना बहुत अजीब सा लग रहा है। लेकिन लगता है कि इस तरह से शायद मेरा दुख, मेरा क्षोभ और वह अपमान जिसकी आग मुझे ख़ाक कर देना चाहती है उससे कुछ हद तक राहत मिल जाए। एक बार को लगा न बताऊं। यह कहना कि पुलिस ने आपको सड़क पर पीटा है कितना बुरा एहसास है। लेकिन इसे बताना जरूरी भी लगता है ताकि आप समझ सकें कि आपके साथ क्या कुछ घट सकता है। वह भी देश की राजधानी में।
कोरोना से लड़ाई में मेरे सैकड़ो पत्रकार साथी बिना किसी बहाने के भरसक काम पर जुटे हुए हैं। मैं भी इसमें शामिल हूं। आज दोपहर डेढ़ बजे की बात है। मैं वसंतकुंज से नोएडा फिल्म सिटी अपने दफ्तर के लिए निकला था। सफदरजंग इन्क्लेव से होते हुए ग्रीन पार्क की तरफ मुड़ना था। वहीं पर एक तिराहा है जहां से एक रास्ता एम्स ट्रॉमा सेंटर की तरफ जाता है। भारी बैरिकेडिंग थी। पुलिस जांच कर रही थी। भारी जाम लगा हुआ था। मेरी बारी आने पर एक पुलिसवाला मेरी कार के पास आता है। मैंने नाम देखा ग्यारसी लाल यादव। दिल्ली पुलिस। मैंने अपना कार्ड दिखाया और कहा कि मैं पत्रकार हूं और दफ्तर जा रहा हूं। मेरी भी ड्यूटी है। उसने सबसे पहले मेरी कार से चाबी निकाल ली। और आई कार्ड लेकर आगे बढ़ गय। आगे का संवाद शब्दश: तरह था।
कॉन्स्टेबल ग्यारसी लाल यादव – माधर&^%$, धौंस दिखाता है। चल नीचे उतर। इधर आ।
मैं पीछे पीछे भागा। उसने दिल्ली पुलिस के दूसरे सिपाही को चाबी दी। मेरा फोन और वॉलेट दोनों बगल की सीट पर रखे थे। मैंने कहा आप ऐसा नहीं कर सकते। अपने अधिकारी से बाद कराइए।
कॉन्स्टेबल ग्यारसी लाल यादव – मैं ही अधिकारी हूं माधर^%$।
मैंने कहा आप इस तरह से बात नहीं कर सकते। तबतक उसने एक वैन में धकेल दिया था। मैंने कहा मोबाइल और वॉलेट दीजिए। तबतक दो इंस्पेक्टर समेत कई लोग वहां पहुंच चुके थे। एक का नाम शिवकुमार था, दूसरे का शायद विजय, तीसरे का ईश्वर सिंह, चौथे का बच्चा सिंह।
मैंने कहा आप इस तरह नहीं कर सकते। आप मेरा फोन और वॉलेट दीजिए।
तब इंस्पेक्टर शिवकुमार ने कहा ऐसे नहीं मानेगा मारो हरामी को और गिरफ्तार करो।
इतना कहना था कि तीनों पुलिसवालों ने कार में ही पीटना शुरू कर दिया। ग्यारसी लाल यादव ने मेरा मुंह बंद कर दिया था ताकि मैं चिल्ला न सकूं। मैं आतंकित था।
आसपास के जिन गाड़ियों की चेकिंग चल रही थी वो जुटने लगे तो पुलिस ने पीटना बंद कर दिया। मैं दहशत के मारे कांप रहा था। मैंने अपना फोन मांगा। तो उन्होंने मुझे वैन से ही जोर से धक्का दे दिया। मैं सड़क पर गिर पड़ा। एक आदमी ने मेरा फोन लाकर दिया। मैंने तुरंत दफ्तर में फोन करके इसके बारे में बताया।
मैंने सिर्फ इतना पूछा कि आपलोग किस थाने में तैनात हैं। इंस्पेक्टर शिव कुमार ने छूटते ही कहा तुम्हारे बाप के थाने में। ग्यारसी लाल यादव ने कहा- हो गया या और दूं। उन्हीं के बीच से एक आदमी चिल्लाया- सफदरजंग थाने में हैं, बता देना अपने बाप को।
कार में बैठा तो लगा जैसे किसी ने बदन से सारा खून निचोड़ लिया हो। मेरा दिमाग सुन्न था। आंखों के आगे कुछ नजर नहीं आ रहा था। समझ नहीं पा रहा था कि इतने आंसू कहां से आए।
मुझे पता है कि जिस व्यवस्था में हम सब जीते हैं वहां इस तरह की घटनाओं का कोई वजूद नहीं। मुझे यह भी पता है कि चौराहे पर किसी को पीट देना पुलिस की आचार संहिता में कानून व्यवस्था बनाए रखना का एक अनुशासन है। और मुझे यह भी पता है कि इस शिकायत का कोई अर्थ नहीं।
फिर भी मैं इसे इसलिए लिख रहा हूं ताकि यह दर्ज हो सके कि हमारे बोलने, हमारे लिखने और हम जिस माहौल में जी रहे हैं उसमें कितना अंतर है। हमारी भावनाएं कितने दोयम दर्जे की हैं। हमारे राष्ट्रवादी अनुशासन का बोध कितना झूठा, कितना मनगढ़ंत और कितनी बनावटी हैं।
यह सबकुछ जब मैं लिख रहा हूं तो मेरे हाथ कांप रहे हैं। मेरा लहू थक्के की तरह जमा हुआ है। मेरी पलकें पहाड़ की तरह भारी हैं और लगता है जैसे अपनी चमड़ी को काटकर धो डालूं नहीं तो ये पिघल जाएगी। अपने आप से घिन्न सी आ रही है।
यह सब साझा करने का मकसद आपकी सांत्वना हासिल करना नहीं। सिर्फ इतना है कि आप इस भयावह दौर को महसूस कर सकें। जब हमारी नागरिकता का गौरवबोध किसी कॉन्स्टेबल, किसी एसआई के जूते के नीचे चौराहे पर कुचल दी जाने वाली चीज है।
मैं शब्दों में इसे बयान नहीं कर सकता कि यह कितना अपमानजनक, कितना डरावना और कितना तकलीफदेह है। ऐसा लगता है जैसे यह सदमा किसी चट्टान की तरह मेरे सीने पर बैठ गया है और मेरी जान ले लेगा। और यह लिखना आसान नहीं था।

About The Author

आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

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