उत्तर प्रदेश/लखनऊ (6 नवंबर 2019)- क्या 370 पर बीएसपी के रुख से मायावती का कथित मुस्लिम प्रेम बेनक़ाब हो गया है। क्या मायावती अपने भाई के ख़िलाफ ईडी और कानूनी शिकंजे के डर से समझौते को मजबूर थीं। क्या मायावती हर बार की तरह मुस्लिमों को सिर्फ इस्तेमाल करने की नीयत से राजनीति करती है। क्या धारा 370 पर कुंवर दानिश का पार्टी लाइन से हटकर समाज हित में लिये गये फैसले से नाराज़ थी मायावती। क्या मायावती ने दानिश की दानिशमंदी यानि समझ को मान लिया है। या फिर उप चुनावों में करारी नाकामी के बाद सिर पर खड़े उत्तर प्रदेश चुनावों के लिए मायावती फिर से कथित मुस्लिम प्रेम का स्वांग रचने की तैयारी में हैं।
दरअसल ये सभी सवाल लोगों के मन में हैं। क्योंकि न तो बीएसपी प्रमुख मायावती के भाई आनंद का नाम जांच औऱ छापेमारी में उछले ज्यादा दिन बीते हैं। न ही लोकसभा चुनावों में बुआ-बबुआ के ख़्वाबों पर पानी फिरे ज्यादा अरसा हुआ। नाकामी की ख़ुन्नस इतनी थी कि देर तक राजनीतिक साथ निभाने का वादा करने वाले हाथी और साइकिल का सफर दो अलग अलग रास्तों को बंट गया।
बीएसपी ख़ासतौर से मुखिया सुश्री मायावती के बारे में कहा जाता है कि उनको कथिततौर पर धनपशु, यस मैन , राजनीतिक तौर पर शून्य और अनपढ़ लोग ज्यादा पंसद हैं। जो मोटी रकम देकर टिकट खरीद सके, चंदा उगाह सके, सवाल बिल्कुल न करें और सीधे साधे इशारे समझता रहे। लेकिन अब इसे रणनीति की कमी कहें या दुर्भाग्य नसीमुद्दीन सिद्दीकी से लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे कई ऐसे नाम भी मौजूद है जो बहन जी को आइना दिखाकर निकल लिये। ऐसे में दानिश कैसे अपने एडजस्ट करेंगे या बहन जी उनको कैसे एडजस्ट करेंगी ये बड़ा सवाल है।
लेकिन इस सबसे बीच सबसे ख़ास घटना ये थी कि पहली ही बार लोकसभा का चुनाव लड़कर ससंद पहुंचने वाले एक शिक्षित युवा मुस्लिम नेता का धारा 370 पर बहन जी की हुक्म की तामील के बजाय मुखर हो कर बोलना बसपा मुखिया को शायद नागवार गुजरा। नतीजा लोकसभा में संसदीय दल के नेता के पद से कुंवर दानिश अली को हटाकर अपनी पुरानी पंरमपरा और तेवर दिखाए गये। लेकिन दानिश अली अपने नाम के अनुरूप न सिर्फ समझदार निकले बल्कि राजनीतिक समझ में भी बीएसपी के दूसरे यस मैंन्स से अलग ही निकले। हर रोज़ संसद से लेकर सड़क तक कोई न कोई सियासी चर्चा करने का माद्दा रखने वाले दानिश की ख़ामोशी कहें या फिर मुस्लिम समाज की नाराज़गी मायावती को शायद जल्द ही एहसास हो गया कि पिछले लोकसभा चुनाव से लेकर सूबे में सरकार गंवाने और इस बार भी गैस्ट हाउस कांड को भुलाकर किये गये समझौते के बावजूद न तो संजीवनी ही मिली न ही जांच और सीबीआई से छुटकारा। और तो और ताजा उप चुनाव ने भी बहन जी की आंखे कुछ तो खोली ही होंगी।
बहरहाल जिस कुंवर दानिश अली को अनुच्छेद 370 पर बीएसपी से अलग राय रखने और पार्टी के खिलाफ जाने के कथित आरोप में मायावती ने नेता पद से हटा दिया था। उनको दोबारा बुधवार को बीएसपी के लोकसभा संसदीय दल का नेता बनाने की घोषणा कर दी गई है।
उधर कुंवर दानिश अली ने भी अपनी पार्टी की मुखिया और पूर्व सीएम मायावती द्वारा लोकसभा में बसपा संसदीय दल का नेता चुने पर पार्टी मायावती का धन्यवाद किया है। कुंवर दानिश अली ने कहा कि वे हमेशा की तरह पार्टी के हक़ में जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाएंगे।
बहरहाल उत्तर प्रदेश में बहुत तेज़ी के साथ राजनीतिक गहमागहमी शुरु होने जा रही है। झारखंड और बिहार के बाद उत्तर प्रदेश में भी सियासत की बिसात बिछना तय है। पिछले लोकसभा चुनावों में जीरो पर सिमटने और विधानसभा चुनावों के बाद अपने वजूद को तरस गईं सुश्री मायावती को भी एहसास हो चला था कि ख़ुद अपने वोट बैंक यानि दलित समाज पर अब उनका जादू उतना नहीं रह गया है। ऐसे में मुस्लिमों को कथिततौर पर कई बार छलने के बाद बढ़ती दूरियों का एहसास ही शायद उनको गैस्ट हाउस की यादों को कुछ वक्त के लिए भूलने को मजबूर कर गया। हांलाकि इस फैसले का उनको अखिलेश से ज्यागा फायदा तो हुआ और उनकी लोकसभा में ठीक ठाक उपस्थिति हो गई। लेकिन सत्ता से कोसों दूर और सीबीआई और ईडी सहित कई मामलों के अलावा पार्टी के सासंदों के कथित तौर पर टूटकर भागने की अफवाहों ने भी बीएसपी की आयरन लेडी को शायद कई फैसले बदलने को मजबूर कर दिया।
ऐसे में अगर एक बार फिर बसपा प्रमुख अपने ख़ास सिपहसालारों से बाहर निकलकर आम जनता से संवाद करना शुरु कर दें तो मान्यवर कांशीराम के मिशन और बेहद मेहनतत से खड़ी की गई पार्टी एक बार फिर सही मायनों में बहुंजन समाज, कमजोर, अल्पसंख्यकों और वंचितों का दिल जीत सकती है।