–सियासत नहीं रहनुमाई की ज़रूरत
–नाहल गांव के लोगों की समझदारी का है इम्तिहान

गाजियाबाद (2 जून 2025)- क्या आने वाले 2026 ग्राम पंचायत और 2027 विधानसभा चुनाव के लिए गाजियाबाद के नेताओं और राजनीतिक दलों को बैठे बिठाए बगलें बजाने के लिए एक मुद्दा हाथ आ गया है। क्या मसूरी थाना क्षेत्र के गांव नाहल में उतर प्रदेश पुलिस के जवान की हत्या कानून व्यवस्था पर सवाल के अलावा अब राजनीतिक मुद्दा भी बनती जा रही है। क्या नाहल कांड घर बैठे राजनीतिक बेरोजगार नेताओं के लिए संजीवनी बन सकता है। क्या नाहल गांव के मौजूदा हालात पर गांववासियों को नेताओं से राजनीतिक रोटियां सेंकने के बजाय जमीनी सच्चाई पर बात करने को कहने का समय आ चुका है। और सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या नाहल गांव में बदनामी और प्रताड़ना झेल रहे लोगों से राजनीति और बयानबाजी के अलावा कोई सच्ची हमदर्दी भी करना चाहता है या नहीं। यह तमाम सवाल ऐसे हैं जिन पर बात करना शायद नाहल का हर निवासी करना चाहता है। लेकिन उनके नेता और हमदर्द पिछले कई कांडों की तरह केवल अपनी राजनीतिक रोटियां ही सेंकने की जुगत में लगे हैं। चाहे मसूरी डासना और आसपास के क्षेत्रों में घटित पिछले कुछ मामलों का हो फिर बेकसूरों को जेल भेजने और गिरफ्तारी का डर दिखाकर उगाही करने का हो,हर बार या दलाल दलाली करते नजर आए या फिर नेता राजनीति, लेकिन पीड़ित के ज़ख्मों पर मरहम किसने रखा यह सबको याद है। आज हालात यह है कि नेता घर बैठे या तो ज्ञापन और प्रेस विज्ञप्ति भेज रहे या पुलिस मुख्यालय में जाकर सोशल मीडिया पर फोटो डाल रहे हैं या महज बयानबाजी और कुछ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की हिम्मत जुटा रहे हैं, और कुछ मुंह छिपाए बैठे हैं। लेकिन असल सवालों को अभी तक किसी नहीं छुआ।
मसूरी थाना क्षेत्र स्थित गांव नाहल में जो कुछ हुआ बेहद अफसोसनाक है, इसकी निंदा नहीं बल्कि गहन जांच जरूरी है। साथ ही दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई बेहद जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसी वारदात न हो सके। नाहल गांव में जान गंवाने वाला पुलिसकर्मी हमारे समाज का हिस्सा और किसी मां का लाल और किसी बहन भाई, किसी का सुहाग और अपने परिवार की उम्मीद था। उसके परिवार को अधिक से अधिक मुआवजा दिया जाना चाहिए।
लेकिन पूरे गांव के निवासी, वहां के बच्चे, बूढ़े और महिलाएं यहां तक के मवेशी (जोकि अपने मालिक के पलायन के बाद भूखे प्यासे रहे ) तक को कसूरवार ठहराकर सजा दी जाने वाली सोच ठीक नहीं है। साथ ही स्थानीय मुखबिरों के इशारे पर साधन संपन्न और इज़्ज़तदार लोगों को जेल का डर दिखाकर उगाही करना भी जायज नहीं है। स्थानीय स्तर पर चर्चा और अफवाहों के मुताबिक अभी तक कार्रवाई में कथित मुख्य आरोपी जेल में हैं, दर्जनों उसके अलावा जेल भेजे जा चुके, कई को गोली मारकर लंगड़ा कर दिया गया, और दर्जनों से कथितरूप से उगाही की जा चुकी है। चर्चा यह भी है कि पूरे गांव में दहशत का माहौल है और पलायन को मजबूर हो रहे हैं।
जबकि पुलिस हमेशा स्थानीय लोगों को भरोसे में लेकर समाज में छिपे अपराधिक ओर असामाजिक तत्वों के खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई करती रही है। जिसके बाद न तो किसी को सियासत करने का मौका मिलता न आम जनता पुलिस से डरकर पलायन को मजबूर होती है। लेकिन नाहल कांड के बाद नेताओं की बयानबाजी और स्थानीय लोगों का कथित तौर पर पुलिस के डर से गांव से पलायन साबित करता है कि कहीं तो खामी रही है। पुलिसकर्मी की मौत कैसे हुई इसकी निष्पक्ष जांच स्थानीय नेताओं को की बयानबाजी के लिए बेहद जरूरी है। वैसे भी आने वाले दिनों में ग्रामपंचायत और फिर विधानसभा चुनाव का माहौल गरमाने वाला है ऐसे में हर सियासी दल और नेता नाहल गांव में हुए हादसे को भुनाना चाहेगा। हालांकि सच्चाई यह भी है कि सत्ता से जुड़े और नाहल गांव में स्थानीय तौर पर घर घर से जुड़े कुंवर अय्यूब अली के अलावा अभी तक न तो उनके नेता जयंत चौधरी, मुसलमान वोटों के कथित थोक सौदागर अखिलेश यादव, कांग्रेस के राहुल गांधी, बहुजन की वकालत करने वाली बहन मायावती, चंद्रशेखर रावण और तो और असद्दुदीन औवेसी तक की खामोशी गंभीर सवाल बनी हुई है।
प्रशासन, पुलिस और मीडिया के अलावा स्थानीय लोगों को बेहद समझदारी से काम लेना होगा। वैसे भी नाहल सीधे सादे किसानों और सम्मानित लोगों का ऐसा गांव है जो कि आज़ादी के समय से ही राष्ट्रीय विकास में अपना योगदान पेश करता रहा है।
(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं डीडी आंखों देखी सहारा समय इंडिया टीवी इंडिया न्यूज़ सहित कई राष्ट्रीय न्यूज चैनल्स में जिम्मेदार पदों पर कार्य कर चुके हैं।)