

नई दिल्ली (25 फरवरी 2020)- इन दिनों दिल्ली समेत देशभर में सरकार की नीतियों को लेकर तरह तरह की चर्चाए गर्म हैं। बेरजो़गारी, महिला सुरक्षा, जीडीपी, 5 ट्रिलियन की इकॉनॉमी के सवालों के बीच CAA,NPR का एक नया सवाल और खड़ा हो गया है। लोगों के बीच चर्चा है कि क्या कुछ विदेशी अल्पसंख्यकों से फिक्र करने वाली सरकार अपने ही देश के अल्पसंख्यकों की भी फिक्र करती है कि नहीं।
CAA यानि सिटीज़नशिप अमेंडमेंट बिल को लेकर देश भर में इन दिनों माहौल गर्म है। बंग्लादेश, पाकिस्तान और अफ्गानिस्तान के कुछ धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने और एक खास समुदाय को उससे बाहर रखने की नीति को लेकर भी लोगों में बेचैनी पाई जा रही है। साथ ही श्रीलंका, नेपाल, भूटान, चीन और बर्मा जैसे सीमावर्ती देशों को नज़रअंदाज़ करके अफ्गानिस्तान जैसे सीमा से दूर देश के अल्पसंख्यकों की फिक्र करने वाले सीएए पर भी लोगों में संशय बना हुआ है। लोगों का कहना है कि किसी धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यकों पर मेहरबानी और किसी धर्म के मामने वाले अल्पसंख्यक से भेदभाव भी संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है। लेकिन इस पर सरकार का कहना है कि सीएए से किसी को डरने की ज़रूरत नहीं है। इसमें किसी के साथ अन्याय नहीं किया जाएगा। अब सवाल यही है कि क्या जनता सरकार के आश्वासनों पर भरोसा कर पाएगी।
बहरहाल दिल्ली के शाहीनबाग़ समेत लगभग 22 क्षेत्रों में पिछले लगभग ढाई महीनें से सीएए के विरोध में शांतिपूर्वक प्रदर्शन जारी हैं। उधर देशभर में लखनऊ, मुंबई, कानपुर, मुरादाबाद समेत दर्जनों शहरों में भी सीएए के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। इन सभी प्रदर्शनों की सबसे खास बात ये है कि इनको वो मुस्लिम महिलाएं लीड कर रही है जो कि कभी घर से बाहर नहीं निकलती थीं। जबकि उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन के दौरान लगभग 23 लोगों की मौत हो चुकी है और सोमवार को दिल्ली के कुछ इलाकों में प्रदर्शन के दौरान एक पुलिसकर्मी समेत सात लोगों की मौत की ख़बर है। हिंसा के पीछे बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के भड़काऊ बयानों को जिम्मेदार बताया जा रहा है। हांलाकि दिल्ली पुलिस ने कपिल के खिलाफ एऱआईआर दर्ज तो कर ली है। लेकिन उनकी अभी गिरफ्तारी की कोई ख़बर नहीं है।