गाजियाबाद(6 सितंबर 2015, फरमान अली) -लगता है गाजियाबाद की राजनीति को किसी की नजर लग गई है। गाजियाबाद की राजनीतिक गतिविधियों पर नजर डाले तो यहां की राजनीति जमीनी न होकर केवल और केवल हवा बाजी तक ही सीमित होकर रह गई है। या यूं भी कह सकते हैं कि लंबे समय से गाजियाबाद में मजबूत राजनीतिक नेतृत्व पैदा ही नहीं हो पाया है। अलबत्ता हवाबाजी खूब हो रही है।वर्तमान के नेता पैसा व अफसरों से रसूख तो खूब बना रहे हैं लेकिन जमीन पर अपनी पकड बिल्कुल नहीं बना पा रहे हैं। यही कारण है कि आज यदि कोई कार्यक्रम उन्हें करना होता है तो भीड जुटाने के नाम पर वे दिहाडी मजदूरों को चंद मिनटों के लिए पार्टी कार्यकर्ता बना देते हैं। एक जमाना था जब गाजियाबाद की राजनीति में कई बडे दिग्गत थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री बुध प्रिय मौर्य,सरदार तेजा सिंह, प्यारेलाल शर्मा जैसे बडे कद के नेता था। बुधप्रिय मौर्य,तेजा सिंह व प्यारेलाल शर्मा आज दुनिया में नहीं है लेकिन अपने जमाने में इनकी अलग ही हनक होती थी। इनमें समाज की सेवा करने अलग ही जज्बा कूट-कूट कर भरा था। यही कारण था कि गाजियाबाद की जनता उनकी एक आवाज पर एकत्र हो जाती थी। गाजियाबाद विकास के पथ पर अग्रसर था तथा हिंदुस्तान टिन,पोयशा,अमृत वनस्पति जैसी बडे उद्योग यहां पर थे। इसके बाद राजनीति में परिवर्तन आया तथा केसी त्यागी, राजेंद्र चैधरी,राजपाल त्यागी, सुखबीर सिंह गहलौत, सुरेंद्र प्रकाश गोयल,केके शर्मा सुरेंद्र कुमार मुन्नी राजनीति में उभरकर सामने आए। इस दौरान गाजियाबाद की धूम रही तथा वीपी सिंह ने कांगे्रस छोडकर जनता दल बनाकर एक साइकिल रैली शुरू की। जो गाजियाबाद से ही चली। इसके अलावा आए दिन इन नेताओं द्वारा जनता की आवाज उठाने को लेकर आंदोलन चलते रहते थे। कई बार जीडीए पर उग्र प्रदर्शन हुआ और कई नेताओं को जल की हवा तक खानी पडी थी। इन नेताओं की अपनी अलग पहचान था। इसके बाद एक और खेप आए जिसमें सतपाल चैधरी,राजकुमार भाटी कुछ जुझारू नेता पैदा हुए और देहात मोर्चा नामक संगठन को शुरू किया। इस मोर्चा के नेतृत्व में धौलाना में रिलायंस के खिलाफ जमकर आंदोलन किया गया। इसी दौरान राजीव त्यागी ने भी पिलखुआ के सिखैडा में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को काले झंडे दिखाकर राजनीति में अपनी मजबूत उपस्थिति दिखायी। लेकिन इसके बाद लगता है कि गाजियाबाद में कोई मजबूत नेता पैदा हीं नहीं हुआ या उसे पैदा ही नहीं होने दिया गया। या यूं कहे जिले की राजनीति का टेंड बदला और घोडा गाडी वाले नेता आने लगे। जिनके पास न तो शहर के विकास के लिए कोई विजन है और न ही आम जनता से उनका कोई लेना देना है। स्थिति यह है कि अब नेता और अफसरों का गठजोड हो चुका है और सब पैसा बनाने में लगे है। वर्तमान में जो नेता है उनमें कबाडी, प्रोपर्टी डीलर की संख्या ज्यादा है और घोड गाडी से मजबूत है। राजनीति के नाम पर उनका केवल एक ही काम है कोई बडा नेता आया तो उसका स्वागत कर दिया या पार्टी मुख्यालय से कोई दिशा निर्देश आया तो उसकी रस्म अदायगी कर दी। इसका जीता जागता उदाहरण सत्ताधारी दल की साइकिल रैली में भी देखने को मिला। जिसमें पार्टी के कागजी नेता आपस में फोटो खिंचवाने के लिए लडते-झगडते तो दिखायी दिए लेकिन आम जनता की भीड एकत्र करने का किसी की कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी दी। नतीजा साइकिल रैली को आम जनता में निगेटिव असर गया। अब जरूर ऐसे नेता की है जो आम जनता की बात को सुने ईमानदारी और मजबूती के साथ जनता के अधिकारों के लिए लडे। वह बेदाग हो ताकि पुलिस व अन्य विभागीय अधिकारी उस पर दबाव न बना सकें।