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देश को संभालने का दावा करने वाली पार्टियां क्या अपने अंदर ही आंतरिक लोकतंत्र स्थापित करेंगी ?

क्या कॉंग्रेस पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र की मिसाल क़ायम करने और कोई नया चेहरा, जो दलित समाज से ताल्लुक़ रखता हो उसको पार्टी का अध्यक्ष बनाने की हिम्मत कर सकती है, या फिर एक बार राहुल या प्रियंका के सहारे कथित वंशवाद में ही जकड़ी रहेगी ?
वैसे तो दूसरी पार्टियों का हाल भी कुछ ऐसा ही है ? चाहे भाई भतीजा एंड संस से होते हुए बहुओं तक जा पहुंचे समाजवादियों की बात हो या फिर दादा ले पोता बरते वाले चौधरी चरण सिंह के बेटे से लेकर पोते तक की दास्तां वाली आरएलडी, या फिर चौ. देवी लाल की विरासत को तीसरी पीढ़ी तक संभालने वाली इनेलो, या फिर पति पत्नी और बेटा बेटी तक वाले राजद को भी देखा जा सकता है। उधर बाबा साहेब के नाम पर स्व. काशीराम की बीएसपी में भी बहन जी ने भी अपने भाई आनंद और भतीजे को ही विरासत को संभालने के लायक़ समझा है। यानि बीएसपी में एक भी कार्यकर्ता या नेता इतना क़ाबिल और भरोसेमंद नहीं मिला जिसको मिशन को आगे बढ़ाने कि ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती, और मजबूरन यहां भी परिवार से ही मेहनती और ईमानदार लोग तलाश किये गये।
लेकिन कॉंग्रेस की बात ही कुछ और है दरअसल देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी से जनता बहुत उम्मीद करती है। तो कॉंग्रेस को भी जनता की भावनाओं का ध्यान रखना लाज़िमी ही है। हांलाकि किसी पार्टी में अगला अध्यक्ष कौन होगा इसका पता काफी देर से चलता है, लेकिन कॉंग्रेस में पिछले कई साल से सवाल सबके मन में है कि अगले अध्यक्ष होंगे तो राहुल ही मगर कब.. ?
उधर बीजेपी की नर्सरी में भी कई नये युवराज तैयार होते दिख रहे हैं। नोएडा से लेकर हिमाचल प्रदेश तक कई नाम ऐसे हैं, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि ये लोग तो अपनी प्रतिभा के दम पर राजनीति कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि वशंवाद के दंश से कोई पार्टी ख़ुद को पूरी तरह पाक साफ नहीं कह पा रही है।
तो ऐसे में सवाल यही है कि आम जनता अपने और अपनी पीढ़ियों के लिए सियासत के नाम पर अपनी चहेती पार्टी में दरियां उठाने और नारे लगाने के सिवा उसके लिए कुछ काम बचा है कि नहीं ?
बहरहाल देश और जनता की भलाई के नाम पर जनता को बहलाने वाली सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी जनता पर कितना भरोसा करतीं है.. ये सबके सामने है ! यानि नारे लगाने और दरियां उठाने वाले अपनी हदों में ही रहें क्योंकि परिवार और बेटा बहु और भाई के सामने उनकी हैसियत कुछ नहीं है !!!

(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं, डीडी आंखों देखीं, सहारा समय, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल चैनलों में महत्पूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं।)भारतीय राजनीति में वंशवाद

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आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

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